"ये ब्लॉग मैं अपनी प्राचीन पहाड़ी संस्कृति को समर्पित करता हूँ जिसनें मुझे भाषा,कला,ज्ञान,विश्वास, मानवता,नैतिकता,
परंपरा से सींचा है"
परंपरा से सींचा है"
एक दिन मुझे यह अहसास हुआ कि 'क्यूँ न मैं कुछ ऐसा करूँ कि जिससे हम सब के मस्तिष्क से विस्स्मृत हुई हमारी संस्कृति को आजकल के लोकचलन के माध्यम 'इन्टरनेट' पर लिखित रूप में संचित करूँ ताकि वो 'जिन्दा रहे हमेशा के लिए'. ये ब्लॉग एक पोटली की तरह है जिसमें नाना प्रकार के बुजुर्गो से सुनी गयी लोक कथाएँ,मुहावरे,गीत,नृत्य,वेशभूषा,कलाकार इत्यादि के बारे में वृस्तित वर्णन किया है .
'आशा करता हूँ कि कहीं न कहीं मेरा ये छोटा कदम प्राचीन-पहाड़ी संस्कृति को अपने लोगों में पुनः लोकप्रियता प्रदान करायेगा'
राजेश देवली...